वह गिलहरी बार-बार पानी के जाती, उसमें अपनी पूंछ डुबोती है और उसे निकाल कर रेत पर पटक देती है, उसकी इस कोशिश पर सिद्धार्थ सोच में पड़ गए कि यह नन्ही गिलहरी क्या कर रही हैं ? कहीं वो ऐसा तो नहीं कि वह झील सुखाने की कोशिश कर रही हो | लेकिन इससे तो यह काम कभी पूरा नहीं हो पाएगा, तभी उन्हें लगा कि यह गिलहरी उनसे कुछ कहना चाहती है गिलहरी उनसे कहना चाहती है कि मन में जिस कार्य को एक बार करने का निश्चय कर लिया, तो उस पर अटल रहने से वह काम पूरा हो जाता हैं | बस हमें अपना काम करते रहना चाहिए तभी सिद्धार्थ की तन्द्रा भंग हो गई और उन्हें अपने मन की निर्बलता महसूस हुई और वे वापस लौट आए और फिर से ज्ञान की तलाश में लीन हो गए | अपने निरंतर प्रयास से उन्होंने बुद्धत्व को प्राप्त कर लिया |
महात्मा बुद्ध का अपने निर्णय पर सोच-विचार करना मानवता धर्म मानते है और यही बुद्ध की प्रकृति भी है, उनके इन्ही सोच-विचार वाली बातों से सीख मिलती हैं | उनका मानना है कि सफलता मिले या असफलता, हमें निरंतर प्रयास में लगे रहना चाहिए दूसरा यह कि मनुष्य जीवनभर ज्ञान की प्राप्ति कई जगहों पर जाना पड़ता है चाहे वह महान लोगों का जीवन चरित्र हो या फिर छोटे से जीव का सामान्य सा कार्य हो | हम किसी से भी ज्ञान ग्रहण कर सकते है जिस तरह से महात्मा बुद्ध ने प्रयास किया और बुद्धत्व को प्राप्त किया, ठीक उसी तरह हम सामान्य लोग बुद्धत्व को प्राप्त कर सकते हैं | इसका अर्थ सीधा-सीधा होता है कि हम सभी के अंदर बुद्धत्व के बीज मौजूद होते है और निरंतर कर्म पथ पर चलते रहने वह लगातार कोशिशों से हम भी बुद्धत्व को प्राप्त कर सकते हैं |
गृहस्थ जीवन का ज्ञान
महान साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन महात्मा बुद्ध के जीवन-दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे क्योंकि उन्होंने अपने जीवन काल बौद्ध धर्म अपना लिया | राहुल महात्मा बुद्ध पर किये गए अपने शोधों और किताबों में बताते है कि वे हमेशा महात्मा बुद्ध की दो बातों से काफी प्रभावित हुए है बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने जीवन सन्यास ले लिया लेकिन उन्होंने अपने संदेशों से बताया कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती हैं |
राहुल सांकृत्यायन की बातों से स्पष्ट पता चलता है कि कर्म में ही शांति है बस उसे उदात्त चेतना के साथ करना ही आध्यात्मिक जीवन जीने का उपक्रम है और इससे यह सवाल उठता है कि आप किस तरह का काम कर रहे है और ये किसके लिए और क्यों कर रहे हैं ? आज जो भी कार्य कर रहे है वह देश या समाज के हित में कार्य कर रहा हो | ऐसा कार्य हो जिसमें न सिर्फ आपको रस आ रहा हो, आनंद मिल रहा हो, बल्कि सम्पूर्ण देशवासियों को भी आनंद मिले, रस मिले और यदि आनंद मिल रहा है तो शांति भी मिलेगी | यदी आपको शांति नहीं मिल रही है तो कोई भी धर्म और उसके सन्देश, ग्रन्थ बेकार है तभी तो बुद्ध का सन्देश है 'अप्प दिवों भव' (अपने दीपक स्वयं बने) |
विचारों से मुक्ति
महान ओशो महात्मा बुद्ध के बारे में बताते है कि एक बात का हमेशा स्मरण रखना और उनका जोर हमेशा द्रष्टा बनने पर रहा है वे स्वयं द्रष्टा है, यहां द्रष्टा का मतलब सत्य का दर्शन करना हैं | बुद्ध नहीं चाहते थे कि सामान्य लोग दर्शन के लिए ऊहापोह में उलझे, दार्शनिक ऊहापोह के कारण ही करोड़ो लोग दृष्टि को उपलब्ध नहीं हो पाते है सस्ते में सिद्धांत मिल जाएं, तो सत्य की खोज कोई नहीं करना चाहेगा | बुद्ध अपने संदेशों में किसी तरह का अनुशरण करने को नहीं कहते है बल्कि वे केवल उन लोगों को आगाह करते है जो आंखें होते हुए भी आंखे मूंद कर ज्ञान की प्राप्ति की कामना करता है लेकिन उनके मन के अंदर प्रकाश को देखने की प्यास हैं |
ध्यान से खुलती हैं आंखें
हमारे मन-भीतर की आंखे ध्यान से खुलती है इन आखों पर विचारों की परत नहीं जमनी चाहिए इन विचारों के बोझ से मनुष्य की दृस्टि खो जाती हैं | अलग-अलग विचारों के प्रभावों से आप वह नहीं देख पाते हैं जो आपको देखना चाहिए और इसलिए ध्यान की पहली शर्त है सभी प्रकार विचारों से मुक्ति |
दया, अहिंसा, क्षमा के भाव
बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा कहते है कि, महात्मा बुद्ध को तभी सच्चा ज्ञान मिल पाया जब उनमें दया, क्षमा, करुणा, अहिंसा और मानवता के प्रति प्रेम जैसे भाव चरम पर थे | यह सच है कि यह सभी भाव एक दिन में जगाए या पैदा नहीं किये जा सकते है इसके लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए, इसके बीज माता-पिता को बचपन में ही डालने पड़ेगे | सम्रग रूप से स्वयं को ज्ञान के माध्यम से जाग्रत करना चाहिए स्वयं को अच्छे कर्मो के प्रति मुड़ना पड़ेगा, उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति किसी समुदाय की भलाई के लिए कुछ घंटो के लिए कुछ को समर्पित कर देता हैं | हमें अपनी सभ्यता-संस्कृति और दूसरों के प्रति प्रेम-आदर का भाव पनपता है, हमें यदि स्वयं में बदलाव लाना पड़े तो वह भी कोशिश जरूर करनी चाहिए |
त्रिविध जयंती
गया के बौद्ध भिक्षु नागसेना बताते है कि बुद्ध पूर्णिमा को बौद्ध जगत में महात्मा बुद्ध को त्रिविध जयंती के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि वैशाखी पूर्णिमा के दिन ही राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म लुम्बिनी में, बुद्धत्व कि प्राप्ति उरुवेल वन (बौद्धगया का पुराना नाम) में और उनका महारिनिर्वाण कुशीनगर में हुआ था | वैशाख पूर्णिमा महात्मा बुद्ध के पवित्रतम दिनों में से एक हैं |